तत्कालीन योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष बोले-राहुल की बात से नाराज मनमोहन देने वाले थे इस्तीफा

 नई दिल्ली।  कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा 2013 में अध्यादेश को फाड़ने के प्रकरण के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मोंटेक सिंह अहलूवालिया से पूछा था कि क्या उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए। इसका खुलासा उस वक्त अस्तित्व में रहे योजना आयोग के उपाध्यक्ष अहलूवालिया ने अपनी किताब ‘बेकस्टेज : द स्टोरी बिहाइंड इंडियाज हाई ग्रोथ ईयर्स’ में किया है। सिंह के सवाल पर अहलूवालिया ने उन्हें जवाब दिया कि इस मुद्दे पर इस्तीफा देना सही नहीं है। पीएम मनमोहन सिंह के साथ अहलूवालिया उस वक्त अमेरिका के दौरे पर थे। मोदी सरकार ने 2014 में सत्ता संभालने के बाद योजना आयोग को भंग कर नीति आयोग का गठन किया। 



राहुल ने फाड़ दिया था अध्यादेश


राहुल ने 27 सितंबर 2013 को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दागी नेताओं को बचाने के लिए लाए गए अध्यादेश को फाड़ दिया था। इस अध्यादेश पर बोलते हुए उन्होंने कहा था कि ‘मैं आपको बताता हूं कि इस अध्यादेश पर मेरी निजी राय क्या है? यह सरासर बकवास है। इसे फाड़ कर फेंक देना चाहिए। मेरी तो यही राय है। उनके इस कदम से तत्कालीन मनमोहन सरकार की काफी किरकिरी हुई थी। अमेरिका के दौरे से लौटने के बाद मनमोहन ने अपने इस्तीफे से साफ इनकार कर दिया था।  


'इसके बाद, अचानक उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए'   


अहलूवालिया ने उस वाकये का जिक्र करते हुए कहा कि मैं पीएम सिंह के न्यूयॉर्क दौरे के प्रतिनिधिमंडल में शामिल था। आईएएस से सेवानिवृत्त मेरे भाई संजीव ने फोन पर कहा कि उसने प्रधानमंत्री की आलोचना में एक लेख लिखा है। उसने यह लेख ईमेल किया और कहा कि उम्मीद है कि इससे मुझे बुरा नहीं लगेगा। इस लेख को मीडिया में उसके हवाले से प्रकाशित किया गया। उन्होंने कहा कि मैं इस लेख को लेकर पीएम के सुइट में गया क्योंकि मैं चाहता था कि इस बारे में उन्हें मेरे द्वारा पता चले। उन्होंने इसे शांतिपूर्वक पढ़ा और पहले तो कोई टिप्पणी नहीं की। इसके बाद, अचानक उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए।   


तब क्या चाह रही थी कांग्रेस?


उन्होंने किताब में लिखा कि कांग्रेस राहुल को अपने स्वाभाविक नेता के तौर पर देख रही थी और चाहती थी कि वह पार्टी में बड़ी भूमिका निभाएं। ऐसे हालात में, जब राहुल ने अध्यादेश का विरोध किया तो पार्टी के वरिष्ठ नेता जो अब तक मंत्रिमंडल और सार्वजनिक तौर पर अध्यादेश का समर्थन कर रहे थे, अचानक इसका विरोध करने लगे। उन्होंने किताब में यूपीए सरकार की सफलताओं और विफलताओं का भी उल्लेख किया है। उन्होंने यूपीए-2 के दौरान भ्रष्टाचार के आरोपों और पॉलिसी पैरालिसिस का भी जिक्र किया है।