आस्तिकता की आधारशिलाएँ
सन्त की सात्विक आज्ञाओं के पीछे प्राण तक विसर्जन करने के लिए प्रस्तुत रहें
जिस पर भगवान की कृपा का प्रकाश हो जाता है उसी को विशुद्ध सच्चे संत के दर्शन होते हैं उसी को वह मिलते हैं किंतु कभी-कभी ऐसा भी हो ही जाता है नहीं नहीं पाए ऐसा ही हो जाता है कि जैसे किसी साग बेचने वाली को हटात कोई अनमोल हीरा मिल जाए वैसे कोई हटात बिना किसी प्रयास के किसी पर विशुद्ध सच्चे संत के संपर्क में आ जाए हम शायद सोच सकते हो कि मुझे तो परम विशुद्ध संत अवश्य मिल गए हैं और मैं मैं तो साग बेचने वाली की श्रेणी में कदापि नहीं हूँ जो अनमोल कभी नहीं देखे हीरे की कीमत नहीं जानती मैं तो संत महिमा को जानता हूं उसका उपयोग उपभोग करता हूं संत का आदर करता हूं मेरा तो जीवन उनके लिए ही उनपर ही निछावर हो चुका है बस यही यदि हमारे मन में स्वप्न में भी ऐसी विचारधारा चल पड़ती है तो यह हमारा नितांत भ्रम है इस ब्रह्म को हम जितना शीघ्र सर्वथा परित्याग कर देंगे उतनी ही शीघ्रता से हमारे श्रेय का मार्ग प्रशस्त होकर भगवान के सच्चे प्रकाश का हमें अवश्य-अवश्य शीघ्र से शीघ्र साक्षात्कार होकर ही रहेगा सच तो यह है कि जिसे सचमुच परम विशुद्ध संत मिल जाते हैं जो तनिक भी उनकी महिमा का ज्ञान रखता है उनकी महिमा का तनिक भी उपयोग अपने जीवन में करता है चाहे लचर-पचर विश्वास के साथ ही तनिक भी किंतु सच्चे अर्थ में उन पर न्योछावर हो जाने की लालसा जिसमें जाग उठती है उसे संत भगवान से भी अधिक प्रिय लगने लगते हैं यदि ऐसा नहीं हुआ है तो उसके जीवन में या तो उसे असली परम विशुद्ध संत मिले ही नहीं हैं या वह है उस श्रेणी में बस उस साग बेचने वाली की श्रेणी में ही जिसे प्रकाश देने वाला एक पत्थर का टुकड़ा समझ कर हीरे को लेकर उसी अनमोल हीरे को अपने घर लाकर ताले में रख दिया है उसने भी संत को एक बड़ा ही सज्जन व्यक्ति समझ कर अपने मन रूपी घर के किसी कोने में स्थान दे रखा है संत मिलन का अर्थ उसके जीवन में इतना ही है *परम विशुद्ध संत की महिमा अपार है हम अपनी कुतर्क की बुद्धि से लेकर उसको समझ ही नहीं सकते* उसके लिए आवश्यकता होती है एक बार विश्वास का पथ अपनाकर चलने की उनके पीछे पीछे कदम बढ़ाने की पीछे पीछे का अर्थ है उनकी रुचि की दिशा में उनकी रुचि को देख कर अपनाकर उसे ही अपना कर चलना यहाँ तो हमारी दशा है उस राहगीर से भी गई बीती जो जिस किसी से भी राह पूछ लेता है और विश्वास करके निश्चिंत होकर उस राह पर बढ़ता ही चला जाता है उसके मन में यह संशय नहीं जाता कि राह बताने वाला मुझे धोखा दे रहा है वह राहगीर ठीक ठीक रास्ते का मोड़ आने पर पूछी लेगा किसी और से किसी से और सीधे जाना है कि दाहिने मुडना है क्या पता लेकर बताने वाले की आज्ञा का अनुसरण करता है हम तो पद पद पर अपनी मनमानी करते हैं संत के बार-बार मना करने पर भी आप के गर्त में गिराने की दिशा में ही पैर बढ़ाते हैं और कहीं गिर भी चुके हैं तो भी संत के अतिशय प्यार से मना करने पर भी उनकी छोटी से छोटी शुभम से सुगम आज्ञा का निरादर करके मुंह किए रहते हैं पतन के गड्ढे की और ही पश्चाताप नहीं अपनी भूल पर और तुर्रा यह कि संत में ही दोष दिखता है हमें परम शुद्ध संत से मिलने का प्राय: इतना ही अर्थ है जनसाधारण के जीवन में आज किंतु इससे परम विशुद्ध संत बिल्कुल भी नाराज नहीं होते उनकी कृपा का प्रवाह वैसे ही चलता रहता है और पीछे पीछे एक क्षण जीवन में ऐसा आएगा ही हो सकता है वह क्षण आए ठीक मृत्यु के बिंदु पर ही जिस क्षण हमारे जीवन की धारा मोड़ेगी ही प्रभु की ओर संत मिलन विशुद्ध संत मिलन की अमृता अमोघ ता उनकी कृपा के प्रवाह की अव्यक्ता व्यक्त होकर ही रहेगी *मोर मन प्रभु अस विश्वासा अश विश्वासा राम ते अधिक राम कर दासा* यह सत्य होकर ही रहेगा भले ही जगत से इस अद्भुत चमत्कार को परमार्थिक सत्य को ना जान पाए बुद्धि वादी के लिए यह हास्यास्पद ही बना रहे किंतु सत्य तो सत्य ही रहता है सत्य किसी मानता की अपेक्षा नहीं रखता हम जिसे संत मान चुके हैं उनकी शादी का ज्ञान के पीछे अपने प्राण तक भी विसर्जित करना पड़े इसके लिए सच्चा साहस बटोर कर अपने जीवन की गाड़ी को आगे बढ़ाते चले जाएं हमें भगवान का विश्वास मिलेगा ही।
*।। परम पूज्य श्रीराधाबाबा जू ।।*