राम।।🍁
🍁 *विचार संजीवनी* 🍁
मेरे मन में एक बात आ रही है ! लोग कहते हैं कि बद्रीनारायण जाएँ, वृंदावन जाएं, अयोध्या जाएं, अमूक जगह जाएं । पर कितने दिन जाओगे ? मेरे से पूछते हैं कि वहां जाऊं तो मैं कहता हूं कि जाओ ! मैं कैसे कहूं कि मत जाओ ! पर कितने दिन फिरोगे ? उम्र बीत रही है, मौत नजदीक आ रही है ! कहीं जाने की जरूरत नहीं है। एक जगह बैठकर जप करो, भगवान को याद करो, इससे जो शांति मिलेगी वह कहीं जाने से नहीं मिलेगी। एकदम पक्की बात है ! यह बात आपको जँचे तो कर लो। भटकते-भटकते कई जन्म बीत गए । अब भी वही बात है कि वहां जाऊं...वहां जाऊं ! समय चला जाएगा, मौत आ जाएगी, भजन कब करोगे ! आप जरा सोचो ! आपको क्या जरूरत है जाने की ! याद तो भगवान को करना है। अपने केवल भगवान हैं। न वृंदावन हमारा है, न मथुरा हमारी है, न बद्रीनारायण हमारा है, न ऋषिकेश हमारा है, एक परमात्मा हमारे हैं। बैठकर उसी को याद करो । अब यह करेंगे, वह करेंगे तो केवल समय बर्बाद होगा, और कुछ नहीं ! जप करो, ध्यान करो, स्मरण करो, पुस्तक पढ़ो ! भगवान में लग जाओ। न कहीं जाना है, न कुछ करना है। बहुत जल्दी काम हो जाएगा ! इसमें वृंदावन, अयोध्या आदि का तिरस्कार नहीं है। मैं यह नहीं कहता कि यहाँ बैठ जाओ। आपको वृंदावन प्यार लगे तो वृंदावन जाकर बैठ जाओ। अयोध्या प्यारी लगे तो अयोध्या में जाकर बैठ जाओ। भटकते-भटकते बहुत वर्ष हो गये, बहुत जन्म बीत गये ! अब तो भटकना बंद करो ! जब परमात्मा की प्राप्ति करनी है तो फिर क्यों भटको ? भटकते फिरोगे तो शांति नहीं मिलेगी, पक्की बात है ! कोल्हू का बैल उम्रभर घूमता है और वहीं-का-वहीं रहता है।
राम ! राम !! राम !!!
परम् श्रद्धेय स्वामी जी श्रीरामसुखदास जी महाराज
*परमप्रभु अपने ही महुँ पायो*, पृ. सं ९८