🥀गर्भाशय भ्रंश यानि गर्भाशय का अपनी जगह से खिसक कर योनि के बाहरी हिस्से तक पहुंच जाना गर्भाशय भ्रंश या प्रोलैप्स ऑफ़ यूटेरस (Uterine Prolapse) कहलाता है।
🌻
गर्भाशय भ्रंश का कारण🌻
अंग भ्रंश का सबसे पहला कारण जननेन्द्रियों की मांसपेशियों का कमजोर हो जाना होता है. महिलाओं में अत्यधिक शारीरिक कमज़ोरी, प्रसव के बाद अधिक समय तक विश्राम न करना, मूत्ररोग, गर्भाशय के भार का बढ़ना, ज़्यादा भार का उठाना आदि गर्भाशय भ्रंश के कारण है।
बच्चे का जन्म:🌺 अब बात ये है कि जननेंद्रियाँ कमजोर क्यों हो जाती है और उसकी पहली वजह है बार बच्चों को जन्म देना.
बुढापा ( Old Age )🌺 : बुढापे के कारण भी जननेंद्रियाँ कमजोर हो जाती है.
🌹फ्राइब्रायड ( Friarbird ) : अगर महिला को फ्राइब्रायड है तो इससे उनके मूत्राशय में थक्के आ जाते है और ये अंग भ्रंश का कारण बनते है.
🥀मोटापा ( Obesity ) : मोटापा भी अंग भ्रंश की एक अहम वजह बनता है क्योकि मोटापे में योनि के आसपास की दीवारों के पास अतिरिक्त चर्बी जम जाती है.
🌺रीढ़ की हड्डी में घाव ( Wound in Backbone ) : कई मामलों में देखा गया है कि जिन महिलाओं की रीढ़ की हड्डी में घाव या कोई अन्य समस्या होती है उनको भी अंग भ्रंश की समस्या हो जाती है.स्नेहा समूह
अंग भ्रंश के सामान्य लक्षण🌸
जननेन्द्रियों में भारीपन :🌺पीड़ित महिलाओं को ऐसा आभास होने लगता है कि जैसे उनकी जननेंद्रियों के आसपास कुछ उग गया हो और इसी वजह से उन्हें अपनी जननेंद्रियाँ भारी प्रतीत होने लगती है.
पीठ में दर्द 🌺: अंग भ्रंश से ग्रस्त महिलाओं की पीठ के नीचे हिस्से में दर्द रहता है, अगर वे लेटी रहे तो उन्हें आराम का अनुभव होता है किन्तु खड़े होते ही फिर दर्द आरम्भ हो जाता है.
पेट में दर्द: 🌺ठीक कमर की ही तरह उनके पेट के निचले हिस्से में भी दर्द व दबाव रहने लगता है.
सम्भोग में दर्द : 🥀ऐसी महिलायें जब सम्भोग करती है तो उन्हें अधिक दर्द का आभास होता है कुछ तो दर्द के कारण बेहोश तक हो जाती है.
🌹बहता मूत्र: ये रोग उनकी किडनी को प्रभावित कर देता है और स्त्री अपने मूत्र को रोकने में असमर्थ महसूस करती है.
🌹अंग भ्रंश रोग के लिए उपचार ( Treatment for Uterine Prolapsed ) :
🌹: रोजाना व्यायाम, सैर और आसन करने से आपको लाभ मिलता है, ध्यान ऐसा रहें कि आपको जननेंद्रिय योनि का व्यायाम अधिक करना है ताकि सभी जननेन्द्रिय अंग अपने स्थान पर रहें.
🌹पेसरी डलवाना ( Pour Pessary ) : अनेक ऐसी महिलायें है जो योनि में गिरे हुए अंगों को उनके स्थान पर वापस लाने के लिए अपनी जननेन्द्रिय योनि में पेसरी डलवा लेती है.
🏵️शल्य क्रिया ( Surgeries ) : और कुछ महिलाओं की स्थिति तो इतनी अधिक बिगड़ जाती है कि उन्हें शल्य क्रियाओं के बाद ही आराम प्राप्त हो पाता है.
कुछ आयुर्वेदिक उपचार🌺
🥀जायफल ( Nutmeg ) : सबसे पहले जायफल को पिसें और पानी में डालकर काढा तैयार करें. जब ये ठंडा हो जाए तो एक रुई का फोहा लें और इसे काढ़े में डुबोकर योनि में रखें, ये उपाय जल्द ही योनि भ्रंश की समस्या से निजात दिलाता है.
,🍃छुई मुई ( Mimosa Plant ) : छुई मुई के बारे में तो आपने जरुर सूना ही होगा. आप इसके पत्तों या जड़ को पानी के साथ घिसकर एक लेप तैयार करें, अब इस लेप को उस स्थान पर लगाएं जहाँ गर्भाशय बाहर निकला हुआ है. साथ ही आप ऊपर से पट्टी भी बांध लें और रोगी को आराम करने के लिए लिटा दें. कुछ दिनों तक रोजाना इस उपाय को नियमित रूप से अपनाने से गर्भशय वापस अपने स्थान पर चला जाता है और पीड़ित महिला को आराम मिलता है.स्नेहा समूह
🌹होमियोपैथी उपचार
सीपिया 30– यह इस रोग की अत्युत्तम औषधि है । भीतरी अंगों के बाहर निकल पड़ने जैसी अनुभूति हो जिससे रोगिणी अपनी दोनों टाँगों को परस्पर सटा ले, नीचे की ओर भार का अनुभव हो तो लाभप्रद है । इस दवा को 1M, 10M शक्ति में भी लक्षणानुसार दे सकते हैं परन्तु उच्चशक्ति को बार-बार दोहराना नहीं चाहिये ।
🌹फ्रेक्सिनस अमेरिकाना Q- भीतरी अंगों की बाहर निकल पड़ने की अनुभूति हो, नीचे की ओर भार का अनुभव हो, पतला प्रदर जो जलन न करे तो लाभप्रद हैं ।
🏵️लिलियम टिग 30- योनि के भीतर के अवयवों में दबाव का अनुभव होना, शौच की हाजत बने रहना, जरायु का सामने की ओर झुक जाना, योनि के बाहरी भाग में खुजली होना- इन लक्षणों में दें ।
🌸लैकेसिस 30- रजोरोध-काल में जरायु की स्थान-च्युति होने पर दें ।
🌹कोनियम 6, 30- जरायु बाहर दिखाई पड़ने लगे तब यह दवा दें ।
1.,🌻 ,रोगी महिला को हल्का व सुपाच्य भोजन दें।
2. 🌹रोगी महिला को पौष्टिक आहार देना चाहिए।
3. 🥀उसे ज़्यादा से ज़्यादा आराम प्रदान करें। दौड़ने, कूदने और भारी सामान उठाने न दें।
यह होम्योपैथ के दृष्टिकोण से स्वास्थ्य सम्बंधी विभिन्न विषयों पर अपने अनुभव साझा करने के लिए है| यह व्यक्तिगत चिकित्सा का स्थान नहीं ले सकती है|यहाँ प्राप्त जानकारी के आधार पर कोई भी चिकित्सा प्रारंभ करने के पूर्व अपने चिकित्सक से परामर्श अवश्य करें| अन्यथा की स्थिति में होने वाले किसी विपरीत प्रभाव या स्वास्थ्य सम्बन्धी हानि के लिए संचालक जिम्मेदार नहीं होंगे .