दिव्य तांत्रिक चिकित्सा
निर्गुण्डी द्वारा कायाकल्प
निर्गुण्डी – इसका संस्कृत नाम इन्द्राणी है। इसे संभालू भी कहा जाता है। अंग्रेजी में इसे इंडियन प्रिवेट कहते है। इसका लेटिन नाम विटेक्स नेगुएडो। तंत्र ग्रंथों में इसकी बहुत महिमा गाई गयी है। आयुर्वेद में आधुनिक शोध कर्ताओं ने इसे सुजन नष्ट करने वाला , खून साफ़ करने वाला , वात रोग को दूर करने वाला, गठिया, सुजाक एवं नेत्र रोगों को दूर करने वाला बताया है।
प्राचीन काल में इसे सांप-बिच्छु के जहर को नष्ट करने के लिए भू प्रयुक्त किया जाता था। परन्तु आधुनिक युग में इसपर विवाद है। यूनानी चिकित्सा में इसे पागल कुत्ते के विष को नष्ट करने के लिए प्रयोग किया जाता है और इसे काम शक्ति बढ़ाने वाला मन जाता है। इसका तांत्रिक कायाकल्प प्रयोग इस प्रकार है –
500 ग्राम निर्गुण्डी के जड़ का चूर्ण एवं 1 किलो शहद, बच का चूर्ण, मुंडी का चूर्ण , नीम के जड़ के छाल का चूर्ण, गुडुची का चूर्ण , भृंगराज चूर्ण – 100 -100 ग्राम इसमें डालें और इसे पहले बताये गये तरीके से ढक्कन बंद करके मिट्टी में एक महीने तक दबा दें। एक महीने बाद इसका 10 ग्राम , 20 ग्राम घी के साथ सेवन करके ऊपर से दूध पिए। केवल दूध भात खाए।
खट्टा और नमक वर्जित है। यह आश्चर्यजनक रूप से शरीर की क्रिया को प्रभावित करता है और सम्पूर्ण रूप से उसमें नया तेज भर देता है। तन्त्र ग्रंथों में कहा गया है कि इस प्रकार प्रयोग करते हुए हर एक वर्ष में तीन महिना 5 साल तक करें, तो मनुष्य 300 साल तक जिन्दा रह सकता है। इसका तो नहीं कहा जा सकता, परन्तु यह एक रसायन टॉनिक है और आश्चर्यजनक लाभ देता है। ब्रिटिश काल में इस पर अनेक शोध हुए थे और ये सत्य पाया गया था।