*ॐ श्री परमात्मने नमः*
_प्रश्न‒स्वामीजी, आपने कहा कि भगवान्की कृपासे ही काम होता है, तो वह कृपा कब होगी ?_
स्वामी रामसुख दास जी‒कृपा कब होती है, कैसे होती है‒यह हम जानते नहीं ! बैठे-बैठे अचानक हो जाती है ! कारण हम जानते नहीं । कोई चिन्तन बार-बार होता है और हम जानते हैं कि यह ठीक नहीं है, फिर भी मन उसको छोड़ता नहीं । पर अचानक वह मिट जाता है ! यह कृपा ही तो है ! सन्त-कृपा भी ऐसे ही है । कब हो जाय, पता नहीं ! यही मालूम होता है कि ऐसा कोई समय आता है, जिसमें कृपा होती है !
खास बात तो मेरेको यह जँचती है‒‘हरि से लगे रहो भाई तेरी बिगड़ी बात बन जाई ।’ यही बात समझमें आती है ! ‘भजत कृपा करिहहिं रघुराई’ (मानस, बाल॰ २०० । ३) ।
_प्रश्न‒जब भगवान्की कृपा सबपर समान रूपसे है तो फिर उस कृपासे सबको समान लाभ क्यों नहीं होता ?_
स्वामीजी‒भगवान्के सम्मुख न होनेके कारण समान लाभ नहीं होता । मैं तो सम्मुख भी नहीं हुआ, फिर भी भगवान्ने मेरेपर कृपा की ! ! सम्मुख होनेपर कृपा करे, सम्मुख न होनेपर न करे तो कृपा क्या हुई ? उनकी कृपा अहैतुकी है । ऐसा कोई अवसर आता है कि उनकी कृपासे काम हो जाता है ! वह अवसर कैसे आता है, कब आता है, हम जानते नहीं !
वे कृपालु हैं । कृपा करनेका उनका स्वभाव है । कृपा करनेमें उनका स्वभाव कारण है, और कोई कारण नहीं । सम्पूर्ण जीव उनकी कृपासे ही जी रहे हैं ।