प्रयागराज. गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम की नगरी प्रयागराज में माघ मेला-2020 मनाया जा रहा है। यहां स्नान, दान, तप-जप के लिए तमाम श्रद्धालु व संत कल्पवास कर रहे हैं। बुधवार सुबह से ही श्रद्धालु लगातार संगम में स्नान के लिए पहुंच रहे हैं। श्रद्धालुओं का उत्साह ऐसा कि कड़ाके की सर्दी भी आस्था के पग को रोक नहीं पा रही है। मेला प्रशासन ने सुरक्षा के चाक-चौबंद व्यवस्था की है। नागवासुकि से अरैल के बीच संगम के 16 घाटों पर श्रद्धालुओं के स्नान की व्यवस्था की गई है। महिलाओं के लिए 700 चेंजिंग रूम बना गए हैं।
बुधवार को यहां करीब 80 लाख श्रद्धालुओं के पहुंचने का अनुमान लगाया है। भोर से ही श्रद्धालुओं ने पवित्र त्रिवेणी में पुण्य की डुबकी लगानी शुरू कर दी है। वहीं, मंगलवार की भोर से ही स्नान करने श्रद्धालु पहुंचने लगे थे। बुधवार तड़के गंगा और संगम तट श्रद्धालुओं से लबालब दिखाई देने लगा। स्नान, ध्यान और दान का सिलसिला जारी है। मंगलवार को स्नान के बाद भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु तंबुओं की नगरी में रुके रहे, बुधवार को भी पुण्य की डुबकी लगा रहे हैं।
2500 बीघा क्षेत्रफल में बसाया गया है मेला परिसर
माघ मेला पहली बार 2500 बीघा क्षेत्रफल में बसाया गया है। पिछले साल इसका दायरा 2000 बीघा था। यहां करीब पांच लाख तंबुओं व तिरपाल का अस्थायी शहर बयाया गया है। माघ मेले की शुरुआत पौष पूर्णिमा से हुई है। मकर संक्रांति पर्व पर मुख्य स्नान होगा। इसके लिए सोमवार से ही श्रद्धालु संगम पहुंचे लगे थे। बुधवार को मकर संक्रांति पूर्व पूरे देश में मनाया जाएगा। लेकिन मंगलवार से ही लोगों ने स्नान-दान शुरू कर दिया है।
नागवासुकि से अरैल के बीच संगम के 16 घाटों पर श्रद्धालुओं के स्नान की व्यवस्था की गई है। महिलाओं के लिए 700 चेंजिंग रूम बना गए हैं। वर्ष 2018 के मेले में 5 सेक्टर थे, जबकि इस बार 6 सेक्टर में मेला बसाया जा रहा है। माघ मेले के दौरान रेलवे ने मकर संक्रांति पर्व पर 225 मेला स्पेशल ट्रेनों का संचालन किया है।
मकर संक्रांति की यह पौराणिक मान्यताएं
भारतीय विद्या भवन के प्राचार्य डॉ. त्रिवेणी प्रसाद त्रिपाठी के मुताबिक मकर संक्रांति के साथ कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हैं। माना जाता है कि इस दिन सूर्य भगवान अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाते हैं। शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं। इसलिए इस दिन को मकर सक्रांति के नाम से जाना जाता है। ये भी कहा जाता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत कर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी व सभी असुरों का सिर मंदार पर्वत में दबा दिया था। उसी दिन से मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जाता है।
यह भी माना जाता है मकर संक्रांति के दिन ही गंगा जी भागीरथ के पीछे- पीछे कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में उनसे जा मिली थी। अन्य मान्यता है कि गंगा को धरती पर लाने वाले भागीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था, जिसे स्वीकार कर गंगा समुद्र में जाकर मिल गई थी। ये भी मान्यता है कि सर शय्या पर लेटे हुए भीष्म पितामह ने अपना शरीर त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन का ही चयन किया था। एक अन्य मान्यता के अनुसार मकर संक्रांति के दिन ही यशोदा ने कृष्ण जन्म के लिए व्रत किया था, जिसके बाद मकर संक्रांति के व्रत का प्रचलन हुआ।