भारत का आयुर्वेदिक ज्ञान: आँखों के रोग

भारत का आयुर्वेदिक ज्ञान: आँखों के रोग
आँखों के रोग
1.आँख का रोग 


मनुष्य के शरीर में आंखें वह अंग हैं जिसका सबसे अधिक उपयोग किया जाता है। आंखें वह इन्द्रियां होती हैं जिसके कारण ही हम वस्तुओं को देख सकते हैं। हमारे शरीर की समस्त ज्ञानेन्द्रियों में आंखें सबसे प्रमुख ज्ञानेन्द्रियां हैं। आंखों के बिना किसी कार्य को करने में हम असमर्थ हो जाते हैं।


आंखों की बनावट:-
         वैसे तो प्रकृति ने हमारी आंखों की रक्षा का प्रबंध बहुत ही अच्छे ढंग से कर रखा है। आंखों की बनावट इस प्रकार की है कि हडि्डयों से बने हुए कटोरे इनकी रक्षा करते हैं। आंखों के आगे जो दो पलकें होती हैं वे आंखों में धूल तथा मिट्टी तथा अन्य चीजों से रक्षा करती है। आंखों की अन्दरुनी बनावट भी इस प्रकार की है कि पूरी उम्र भर आंखे स्वस्थ रह सकती हैं। सिर्फ आंखों की अन्दरूनी रक्षा के लिए उचित आहार की जरुरत होती है जिसके फलस्वरूप आंखें स्वस्थ रह सकती हैं। सभी व्यक्तियों की आंखें विभिन्न प्रकार की होती हैं तथा उनके रंग भी अलग-अलग हो सकते हैं।
         हमारी आंखें इस प्रकार की होती हैं कि वे सभी वस्तुओं को आसानी से देख सकें। आज के समय में हम सभी व्यक्तियों को मजबूरी में चीजों को पास से देखना पड़ता है क्योंकि आज के समय में गंदगी, धूल तथा धुंआ इतना बढ़ गया है कि हमारी आंखें स्वस्थ नहीं रह पाती हैं। प्रकृति ने आंखों की सुरक्षा के लिए आंखों को चौकोर आकार में बनाया है और आंखों की सुरक्षा के लिए पलकें भी होती हैं जो आंखों को हवा, धूल तथा मिट्टी से बचाती हैं। अश्रु-ग्रन्थियां आंसुओं को आंख से बाहर निकालकर आंखों की धूल मिट्टी साफ कर देती हैं। आंसुओं में लाइसोजाइम नामक एन्जाइम होता है, जो आंखों के रक्षक का काम करता है और आंखों में संक्रमण फैलाने वाले जीवाणुओं से रक्षा करता है।


आंखों के प्रकार:-
कानी आंखें।
भैंगी आंखे।
कंजी या बिल्लौरी आंखें।
छोटी और धंसी आंखें।
बड़ी आंखें।
छोटी-बड़ी आंखें।
सुरमयी आंखें।
कथई आंखें।
हल्की नीली आंखें।
आंखों में सूजन होना:- इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति की आंखों के पास सूजन हो जाती है। यह रोग किसी और रोग के होने का लक्षण भी हो सकता है।  
आंखों से पानी आना:- इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति की आंखों से पानी निकलने लगता है। यह किसी अन्य रोग के होने का लक्षण भी होता है।
पलकों और आंखों की हडि्डयों के रोग:- इस रोग से पीड़ित रोगी की आंखों के पास की हडि्डयों में दर्द होने लगता है।
आंखों का लाल होना:- इस रोग से पीड़ित रोगी की आंखें लाल हो जाती हैं जो किसी और रोग के होने का लक्षण भी होता है।
आंखों में जलन होना:- इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति की आंखों में जलन होने लगती है जो किसी अन्य रोग का लक्षण होता है।
सुबह सोकर उठने के बाद आंखों की पलकों का आपस में चिपकना:- इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति की आंखें चिपक जाती हैं जोकि आंखों से मांड जैसे पदार्थ निकलने के कारण होता है।
आंख के श्वेत भाग के रोग:- इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति की आंख में जो श्वेत (सफेद भाग) होता है उस भाग में लाली या बिन्दु जैसा कोई आकार बन जाता है।
दृष्टिदोष से सम्बन्धित रोग:- इस रोग से पीड़ित रोग को आंखों से कुछ भी नहीं दिखाई देता है।
आंखों के आगे अन्धेरा छा जाना:- इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति की आंखों के आगे अन्धेरा छाने लगता है तथा उसे कुछ भी नहीं दिखाई देता है।
आंखों से धुंधला नजर आना:- इस रोग के कारण रोगी को आंखों से धुंधला नजर आने लगता है।
गुहांजनी (बिलनी या अंजनिया):- इस रोग के होने के कारण रोगी व्यक्ति की आंखों की पलकों पर फुन्सियां हो जाती हैं।
मोतियाबिन्द:- इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति की आंखों के काले भाग में सफेदी सी छा जाती है जिसके कारण रोगी व्यक्ति को कम दिखाई पड़ने लगता है तथा उसकी आंखों का लेंस धीरे-धीरे धुंधला हो जाता है।
आंखों में खुजली होना:- इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति की आंखों में खुजली होने लगती है जो किसी अन्य रोग के होने का लक्षण भी हो सकता है।
आंखों में रोहे, रतौंधी:- इस रोग से पीड़ित रोगी को रात के समय में दिखाई नहीं देता है।
आंखें पीली होना:- इस रोग के कारण रोगी की आंखों का सफेद भाग पीला हो जाता है। यह पीलिया रोग का लक्षण होता है।
बरौनियों का झड़ना:- इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति की आंखों की पलकों के बाल झड़ने लगते हैं।
दूर दृष्टिदोष:- इस रोग से पीड़ित रोगी को दूर की वस्तुएं ठीक से दिखाई नहीं देती हैं या दिखाई देती भी हैं तो धुंधली-धुंधली सी।
निकट दृष्टिदोष - इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति को पास की वस्तुएं साफ-साफ दिखाई नहीं देती हैं।
अर्द्ध दृष्टिदोष (आंशिक दृष्टि):- इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति को कोई भी वस्तु साफ-साफ दिखाई नहीं देती है।
वक्र दृष्टिदोष:- इस रोग से पीड़ित रोगी को कोई भी वस्तु टेढ़ी-मेढ़ी दिखाई देती है।
दिनौंधी:- इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति को दिन के समय में दिखाई नहीं देता है।
द्वि- दृष्टिदोष या भेंगापन:-इस रोग के काण रोगी व्यक्ति को हर वस्तु 2 दिखाई देती हैं।
वर्ण दृष्टिदोष या कलर ब्लाइण्डनेस:- इस रोग से पीड़ित रोगी को आंखों से देखने पर किसी भी रंग की वस्तु के रंग की पहचान नहीं हो पाती है।
धूम दृष्टिदोष:-इस रोग से पीड़ित रोगी को आंखों से देखने पर हर वस्तु धुंधली दिखाई देने लगती है।
कलान्तृष्टि:- इस रोग से पीड़ित रोगी जब किसी भी वस्तु को ज्यादा देर तक देखता है तो उसकी आंखों में दर्द होने लगता है।
नजर कमजोर पड़ जाना:- इस रोग से पीड़ित रोगी को आंखों पर चश्मा लगवाने की जरूरत पड़ जाती है। इस रोग में बिना चश्मे के रोगी व्यक्ति को कुछ भी नहीं दिखाई देता है या दिखाई देता भी है तो बहुत कम।
क्रोनिक कंजक्टिवाइटिस: इस रोग से पीड़ित रोगी की आंखों से पानी निकलने लगता है तथा उसकी अश्रु ग्रन्थियां सूज जाती हैं। रोगी व्यक्ति को नींद भी नहीं आती है।
अधिक ठंड तथा गर्मी के कारण आंखों में कई प्रकार के रोग हो सकते हैं।
उत्तेजक वस्तुओं के आंखों में प्रवेश करने के कारण भी आंखों के कई प्रकार के रोग हो सकते हैं।
शरीर में दूषित द्रव्य के जमा होने के कारण भी आंखों में कई प्रकार के रोग हो सकते हैं।
अधिक शराब पीने तथा विभिन्न प्रकार की दवाइयों के एलर्जियों के होने से व्यक्ति का स्वास्थ्य खराब हो जाता है जिसके कारण उसकी आंखें में कई प्रकार के रोग हो सकते हैं।
शरीर में विटामिन ए तथा कई प्रकार के लवणों आदि की कमी के कारण आंखों के रोग हो सकते हैं।
अधिक पढ़ने-लिखने का कार्य करने तथा कोई भी ऐसा कार्य जिसके करने से आंखों पर बहुत अधिक जोर पड़ता है, के कारण आंखों में कई प्रकार के रोग हो सकते हैं।
अधिक टेलीविजन देखने तथा कम्प्यूटर पर कार्य करने के कारण भी आंखों में रोग हो सकते हैं।
आंखों में धूल-मिट्टी तथा कीड़े-मकोड़े जाने के कारण भी आंखों में कई प्रकार के रोग हो जाते हैं।
रात के समय में अधिक देर तक जागने तथा कार्य करने और पूरी नींद न लेने के कारण आंखों में कई प्रकार के रोग हो सकते हैं।
कम्प्यूटर पर लगातार काम करने से उसकी स्क्रीन से निकलने वाली रोशनी आंखों में कई प्रकार के रोगों को जन्म दे सकती है क्योंकि उसकी रोशनी आंखों के लिए हानिकारक होती है।
पढ़ते समय आंखों पर अधिक जोर देने से, अधिक चिंता करने से, अधिक सोच-विचार का कार्य करने के कारण भी आंखों में कई प्रकार के रोग हो जाते हैं।
बस, चलती हुई रेलगाड़ी, टिमटिमाते हुए बल्ब देखने या कम प्रकाश में पढ़ने के कारण भी आंखों के रोग हो सकते हैं।
अधिक क्रोध करने के कारण आंखों पर जोर पड़ता है जिसके कारण आंखों में कई प्रकार के रोग हो जाते हैं।
अधिक दु:ख का भाव होने तथा रोने से आंखों से आंसू निकलते है जिसके कारण आंखों के रोग हो सकते हैं।
सिर में किसी प्रकार से तेज चोट लगने के कारण भी आंखों में कई प्रकार के रोग हो सकते हैं।
जहर या अधिक उत्तेजक खाद्य पदार्थों का सेवन करने से भी आंखों के रोग हो सकते हैं।
सूर्य के प्रकाश को अधिक देर तक देखने के कारण भी आंखों के कई प्रकार के रोग हो सकते हैं।
वीर्य के वेग को बार-बार रोकने तथा सैक्स के प्रति कोई अनुचित कार्य करने जैसे हस्तमैथुन या गुदामैथुन करने के कारण भी आंखों के रोग हो सकते हैं।
अधिक संभोग करना तथा धातु रोग के कारण भी कई प्रकार के आंखों के रोग हो सकते हैं।
तेज बिजली की रोशनी में काम-काज करने के कारण भी आंखों के रोग हो सकते हैं।
दांतों से सम्बन्धित रोगों के होने के कारण भी आंखों में बहुत से रोग हो सकते हैं।
ठीक समय पर भोजन न करने, अनुचित ढंग से भोजन करने और जरूरत से अधिक भोजन करने के कारण भी आंखों से सम्बन्धित रोग हो सकते हैं।
मिट्टी के तेल वाली रोशनी में पढ़ने से, रास्ते में चलते-चलते पढ़ने से, दिन के समय में कृत्रिम रोशनी में कार्य करने तथा धूप में पढ़ने-लिखने का कार्य करने के कारण भी आंखों में रोग पैदा हो सकते हैं।
किसी भी न देखने योग्य या अनिच्छित वस्तु को देखने या किसी अंजान स्थान पर जाकर वहां की बहुत सी वस्तुओं को एक ही साथ देखने की कोशिश करने के कारण भी आंखों में रोग हो सकते हैं।
चश्मे की आवश्यकता न होने पर भी अधिक समय तक चश्मा लगाए रखने के कारण भी आंखों के रोग हो सकते हैं।
सोते समय अधिक सपनों को देखने के कारण भी आंखों में रोग हो सकते हैं।
अपने सोने का स्थान खिड़की के ठीक सामने रखने के कारण भी आंखों में कई प्रकार के रोग हो सकते हैं।
सिलाई-कढ़ाई आदि का कार्य करते समय, सीने-पिरोने का काम करते समय, सुई की गति के साथ नजर को घुमाने के कारण भी आंखों में कई प्रकार के रोग हो सकते हैं।
डर-चिंता, क्रोध, मानसिक रोग, दोषयुक्त कल्पना करने, अशुद्ध विचार रखने के कारण भी आंखों के बहुत से रोग हो सकते हैं।
जब मन तथा आंखें आराम करना चाहते हो उस समय आराम न करने के कारण आंखों में कई प्रकार के रोग हो सकते हैं।
स्त्रियों में माहवारी से सम्बन्धित कोई रोग होने के कारण भी उसे आंखों के रोग हो सकते हैं।
आंखों में यदि किसी प्रकार का रोग हो जाता है तो सबसे पहले रोगी व्यक्ति को आंखों में रोग होने के कारणों को दूर करना चाहिए।
आंखों के रोग से पीड़ित रोगी को रोग की स्थिति के अनुसार एक से तीन दिनों तक फलों के रस (नारियल पानी, अनन्नास, संतरे, गाजर) का सेवन करके उपवास रखना चाहिए।
आंखों के रोग से पीड़ित रोगी को उत्तेजक खाद्य पदार्थों जैसे- चाय, कॉफी, चीनी, मिर्च-मसालों का उपयोग बंद कर देना चाहिए।
आंखों के रोग से पीड़ित रोगी को विटामिन `ए´, `बी´ तथा `सी´ युक्त पदार्थो का भोजन में अधिक सेवन करना चाहिए क्योंकि इन विटामिनों की कमी के कारण आंखों में कई प्रकार के रोग हो जाते हैं।
यदि आंखों के पास सूजन हो गई हो तो रोगी व्यक्ति को आंखों पर कुछ समय के लिए मिट्टी की गीली पट्टी करनी चाहिए तथा भोजन में अधिक से अधिक हरी सब्जियों का उपयोग करना चाहिए क्योंकि हरी सब्जियों में विटामिन `ए´ अधिक मात्रा में पाया जाता है।
यदि आंखों की पलकें आपस में चिपक गई हैं तो आंखों को सावधानी पूर्वक धोना चाहिए और फिर गीले कपड़े से आंखों को पोंछकर पलकों को छुड़ाना चाहिए।
आंखों के रोग से पीड़ित रोगी को नींबू या नीम के पानी से एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ करना चाहिए, क्योंकि एनिमा क्रिया से पेट साफ होकर कब्ज आदि की समस्या दूर हो जाती है। कब्ज के कारण भी आंखों में विभिन्न प्रकार के रोग हो जाते हैं जो कब्ज को दूर करने पर आसानी से ठीक हो जाते हैं।
आंखों में प्रतिदिन गुलाबजल डालने से आंखों के कई प्रकार के रोग ठीक हो जाते हैं।
यदि आंखों में सूजन या लाली पड़ गई है तो सूर्य की किरणों के द्वारा तैयार हरी बोतल के पानी से आंखों को सुबह तथा शाम के समय धोना चाहिए। इससे यह रोग कुछ ही समय में ठीक हो जाता है।
सुबह के समय में जल्दी उठना चाहिए तथा हरी घास पर नंगे पैर कुछ दूर तक चलना चाहिए। रोजाना ऐसा करने से आंखों की रोशनी तेज होती है।
आंखों को प्रतिदिन दो बार पानी से धोना चाहिए। आंखों को धोने के लिए सबसे पहले एक मोटा तौलिया लेना चाहिए। इसके बाद चेहरे को दो मिनट के लिए आंखें बंद करके रगड़ना चाहिए। फिर आंखों पर पानी मारकर आंखों को धोना चाहिए। इसके बाद साफ तौलिए से आंखों को पोंछना चाहिए। एक दिन में कम से कम 6 से 7 घण्टे की नींद लेनी चाहिए। इससे आंखों की देखने की शक्ति पर कम दबाव पड़ता है। इसके फलस्वरूप आंखों में किसी प्रकार के रोग नहीं होते हैं और यदि आंखों में किसी प्रकार के रोग होते भी हैं तो वे ठीक हो जाते हैं।
आंखों के दृष्टिदोष को दूर करने के लिए रोगी व्यक्ति को कम से कम पांच बादाम रात को पानी में भिगोने के लिए रखने चाहिए। सुबह उठने के बाद बादामों को उसी पानी में पीसकर पेस्ट बना लें। फिर इस पेस्ट को खाना खाने के बाद अपनी आंखों पर कुछ समय के लिए लगाएं। इसके बाद आंखों को ठंडे पानी से धोएं और साफ तौलिए से पोंछे। इसके साथ-साथ रोगी व्यक्ति को गाजर, नारियल, केले, तथा हरी सब्जियों का भोजन में अधिक उपयोग करना चाहिए। कुछ महीनों तक ऐसा करने से आंखों में दृष्टिदोष से सम्बन्धित सभी रोग ठीक हो जाते हैं।
आंखों में किसी भी प्रकार के रोग से पीड़ित रोगी को फलों में सेब, संतरे, बेर, चेरी, अनन्नास, पपीता, अंगूर आदि फलों का सेवन अधिक करना चाहिए। इन फलों में अधिक मात्रा में विटामिन `ए´, `सी´ तथा कैल्शियम होता है जो आंखों के लिए बहुत लाभदायक होता है।
आंखों के किसी भी प्रकार के रोग से पीड़ित रोगी को हरी सब्जियों में पत्तागोभी, पालक, मेथी तथा अन्य हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे शाक, मूली का भोजन में अधिक सेवन करना चाहिए। क्योंकि इनमें अधिक मात्रा में विटामिन `ए´ पाया जाता है और विटामिन `ए´ आंखों के लिए लाभदायक होता है।
आंखों के रोगों को दूर करने के लिए कंद मूल जैसे- आलू, गाजर, चुकंदर तथा प्याज का अधिक सेवन करना चाहिए। ये कंद मूल आंखों के लिए लाभदायक होते हैं।
अखरोट, खजूर, किशमिश तथा अंजीर का प्रतिदिन सेवन करने से आंखों के बहुत सारे रोग ठीक हो जाते हैं।
प्रतिदिन बिना क्रीम का दूध तथा मक्खन खाने से आंखों में कई प्रकार के रोग नहीं होते हैं और यदि हैं भी तो वे जल्दी ही ठीक हो जाते हैं।
पके हुए भोजन में प्रतिदिन चपाती में घी लगाकर खाने से आंखों को बहुत लाभ मिलता है।
आंखों को कई प्रकार के रोगों से बचाने के लिए व्यक्ति को डिब्बाबंद भोजन, केचप, जैम, ज्यादा गर्म भोजन, सूखे भोजन, तली हुई सब्जियां, आचार, ठंडे पेय पदार्थ, आइसक्रीम, केक, पेस्ट्री तथा घी और चीनी से बनी चीजें, मैदा तथा बेसन की मिठाइयों का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए।
रात को किसी मिट्टी या कांच के बर्तन में पानी भरकर एक चम्मच त्रिफला का चूर्ण भिगोने के लिए रख दें और सुबह के समय में इसे किसी चीज से छानकर पानी से बाहर निकाल लें। फिर इस पानी से आंखों को धोएं। इस प्रकार से यदि प्रतिदिन उपचार किया जाए तो आंखों के बहुत सारे रोग ठीक हो जाते हैं।
आंखों के अनेकों रोगों को ठीक करने के लिए प्रतिदिन नेत्र स्नान करना चाहिए। नेत्र स्नान करने के लिए सबसे पहले एक चौड़े मुंह का बर्तन ले लीजिए तथा इसके बाद उसमें ठंडा पानी भर दीजिए। फिर इस पानी में अपने चेहरे को डुबाकर अपनी आंखों को पानी में दो से चार बार खोलिए और इसके बाद साफ कपड़े से चेहरे तथा आंखों को पोंछिए।
प्रतिदिन सुबह के समय घास पर पड़ी हुई ओस को पलकों पर तथा आंखों के अन्दर लगाने से आंखों की रोशनी बढ़ने लगती है तथा आंखों के अनेकों रोग ठीक हो जाते हैं।
प्रतिदिन ठंडे पानी की धार सिर पर लेने से आंखों की रोशनी बढ़ने लगती है तथा आंखों के रोग भी ठीक हो जाते हैं।
सुबह के समय में उठते ही कुल्ला करके मुंह में ठंडा पानी भर लेना चाहिए तथा पानी को कम से कम एक मिनट तक मुंह के अन्दर रखना चाहिए। इसके साथ-साथ आंखों पर ठंडे पानी के छींटे मारते हुए धीरे-धीरे पलकों को मसलना चाहिए। फिर इसके बाद पानी को मुंह से बाहर उगल दें। इस क्रिया को दो से चार बार प्रतिदिन दोहराएं। इस प्रकार से प्रतिदिन करने से आंखों के कई प्रकार के रोग ठीक हो जाते हैं तथा आंखों के देखने की शक्ति में वृद्धि होती है।
प्रतिदिन 5-6 पत्ती तुलसी, एक काली मिर्च तथा थोड़ी सी मिश्री को एक साथ चबाकर खाने से आंखों के रोग जल्दी ही ठीक हो जाते हैं।
प्रतिदिन गाजर तथा चुकंदर का रस पीने से आंखों की रोशनी में वृद्धि होती है।
प्रतिदिन 5 भिगोए हुए बादाम चबा-चबाकर खाने से आंखों की रोशनी बढ़ने लगती है।
प्रतिदिन एक आंवले का मुरब्बा खाएं क्योंकि आंवले में विटामिन `सी´ की मात्रा अधिक होती है जिसके फलस्वरूप आंखों के रोग ठीक हो जाते हैं तथा आंखों की रोशनी में वृद्धि होती है।
प्रतिदिन सुबह तथा शाम को चीनी में सौंफ मिलाकर खाने से आंखों की रोशनी बढ़ने लगती है।
हरे धनिये को धोकर फिर उसको पीसकर रस बना लें। इस रस को छानकर दो-दो बूंद आंखों में डालने से आंखों के रोग ठीक हो जाते हैं तथा आंखों की रोशनी बढ़ने लगती है।
कच्चे आलू को पीसकर सप्ताह में कम से कम दो बार आंखों के ऊपर 10 मिनट के लिए लगाने से आंखों की रोशनी तेज हो जाती है।
प्रतिदिन भोजन करने के बाद हाथों को धो लीजिए तथा इसके बाद अपनी गीली हथेलियों को आंखों पर रगड़ने से आंखों की रोशनी बढ़ती है।
आंखों के रोग से पीड़ित रोगी को रात के समय में जल्दी सो जाना चाहिए तथा गहरी नींद में सोना चाहिए। सोते समय आंखों को हथेलियों से ढक लें और किसी नीली वस्तु का ध्यान करते-करते सो जाएं। सुबह के समय में उठते ही 5 मिनट तक इसी प्रकार से दुबारा ध्यान करे और आंखों को खोलें। इस प्रकार की क्रिया करने से आंखों के रोग ठीक हो जाते हैं।
प्रतिदिन शुद्ध सरसों के तेल से सिर पर मालिश करने तथा दो बूंद तेल कानों में डालने से आंखों की रोशनी बढ़ने लगती है।
प्रतिदिन सुबह तथा शाम के समय में कम से कम 20 मिनट तक उदरस्नान करने से भी आंखों की रोशनी बढ़ती है।
प्रतिदिन मेहनस्नान करने से आंखों के कई प्रकार के रोग ठीक हो जाते हैं।
आंखों के बहुत सारे रोगों को ठीक करने के लिए प्रतिदिन आंखों और गर्दन के पीछे के भाग पर भीगी पट्टी का प्रयोग करने से आंखों में जलन, दर्द तथा लाली रोग ठीक हो जाते हैं।
आंख आने में कपड़े की गीली पट्टी को 10 से 15 मिनट तक आंखों पर रखना चाहिए तथा कुछ समय के बाद इस पट्टी को बदलते रहना चाहिए। इसके साथ ही कम से कम तीन घण्टे के बाद आंखों की 20 मिनट तक गर्म पानी से भीगे कपड़े से सिंकाई करनी चाहिए। इसके फलस्वरूप आंखों का यह रोग ठीक हो जाता है।
आंख आने पर मांड के कारण पलकें आपस में चिपक जाती हैं। इस समय आंखों को खोलने में कभी भी जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए। आंखों को खोलने के लिए आंखों पर पानी के छींटे मारने चाहिए तथा जब तक आंखों की पलकें न खुल जाएं तब तक आंखों पर पानी मारने चाहिए। इसके बाद नीले रंग का चश्मा आंखों पर लगाना चाहिए तथा नीली बोतल के सूर्यतप्त जल से सनी मिट्टी की पट्टी पेड़ू पर दिन में 2 बार लगानी चाहिए। ऐसा करने से यह रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
आंखों के विभिन्न प्रकार के रोगों को ठीक करने के लिए साफ पिण्डोल मिट्टी की पट्टी का लेप बनाकर आंखों के आस-पास चारों तरफ लगाना चाहिए। यह पट्टी एक बार में कम से कम 15 मिनट तक लगानी चाहिए। इस क्रिया को दिन में कम से कम 2-3 बार दोहराएं। इसके फलस्वरूप रोगी व्यक्ति को बहुत लाभ मिलता है।
आंखों की अनेकों बीमारियों को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को दिन में उदरस्नान करना चाहिए तथा इसके बाद मेहनस्नान करना चाहिए। इसके बाद रीढ़ की ठंडी पट्टी का प्रयोग करना चाहिए। इससे रोगी को बहुत लाभ मिलता है।
आंखों के रोगों को ठीक करने के लिए उषापान करना चाहिए। उषपान केवल आंखों के रोगों को ही ठीक नहीं करता है बल्कि शरीर के और भी कई प्रकार के रोगों को भी ठीक करता है। उषापान करने के लिए रोगी व्यक्ति को रात के समय में तांबे के बर्तन में पानी को भरकर रखना चाहिए तथा सुबह के समय में उठते ही इस पानी को पीना चाहिए। इससे शरीर के अनेकों प्रकार के रोग तथा आंखों के रोग ठीक हो जाते हैं तथा आंखों की रोशनी भी बढ़ती है। उषापान करने से मस्तिष्क का विकास होता है तथा पेट भी साफ हो जाता है।
आंखों तथा शरीर के विभिन्न प्रकार के रोगों को ठीक करने के लिए प्रतिदिन जलनेति क्रिया करनी चाहिए।
शुद्धकमल को जलाकर उसका काजल बनाकर प्रतिदिन रात को सोते समय आंखों में लगाने से आंखों की रोशनी तेज होती है तथा आंखों के विभिन्न प्रकार के रोग ठीक हो जाते हैं।
चांदनी रात में चन्द्रमा की तरफ कुछ समय के लिए प्रतिदिन देखने से आंखों की दृष्टि ठीक हो जाती है।
यदि किसी रोगी व्यक्ति की देखने की शक्ति कमजोर हो गई है तो उसे प्रतिदिन दिन में 2 बार कम से कम 6 मिनट तक आंखों को मूंदकर बैठना चाहिए। इससे रोगी व्यक्ति को बहुत लाभ मिल
आंखों के रोगों से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन सुबह के समय में उठकर अपनी आंखों को बंद करके सूर्य के सामने मुंह करके कम से कम दस मिनट तक बैठ जाना चाहिए। इससे रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
आंखों के रोग से पीड़ित रोगी को कोई भी ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए जिससे आंखों से देखने के लिए जोर लगाना पड़े जैसे- अधिक छोटे अक्षर को पढ़ना, अधिक देर तक टी.वी. देखना आदि।
आंखों के रोग से पीड़ित रोगी को पानी पीकर सप्ताह में एक दिन उपवास रखना चाहिए। यदि कब्ज की शिकायत हो तो उसे दूर करने के लिए एनिमा क्रिया कीजिए। इससे रोगी व्यक्ति की आंखों के रोग ठीक हो जाते हैं।
आंखों के अनेकों रोगों को ठीक करने कि लिए विभिन्न प्रकार के व्यायाम हैं जिन्हें प्रतिदिन सुबह तथा शाम करने से ये रोग जल्दी ही ठीक हो जाते हैं।
ठंडे पानी में आंखों को खोलने का व्यायाम:-
पलक झपकाने का व्यायाम-
आंखों के व्यायाम-
हथेली के द्वारा व्यायाम-
आंखों को घुमाने का व्यायाम-
एक दिशा से दूसरी दिशा में जाने तथा झूलने वाले व्यायाम-
हाथ की तर्जनी उंगली से व्यायाम-
पैरों के तलुवों का व्यायाम-
सूर्यमुखी व्यायाम-
कुर्सी पर बैठकर सूर्यमुखी व्यायाम-
पलक मारने का व्यायाम-
दृष्टिपट पर चक्षु व्यायाम-
ऊं (ओम) परिक्रमा-चक्र व्यायाम-
कमजोर आंख तथा नजर के चश्मा छुड़ाने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-
सुबह के समय में उठकर व्यक्ति को प्रतिदिन कम से कम 12 मिनट से लेकर 30 मिनट तक सूर्य की ओर मुंह करके आंखों को बंद करके बैठना चाहिए। इस प्रकार बैठने से पहले रोगी को अपने सिर को ठंडे पानी से धोना चाहिए। इस क्रिया को करने के बाद आंखों पर ठंडे पानी के छींटे मारकर आंखों को धोना चाहिए। इसके बाद कम से कम पांच मिनट तक पामिंग करना चाहिए। इसके फलस्वरूप आंखों के रोग ठीक हो जाते हैं तथा चश्मे का नम्बर कम होने लगता है।
सुबह के समय में मुंह धोने के बाद एक गिलास पानी में कागजी नींबू का रस मिलाकर पीना चाहिए। इसके बाद दोपहर के समय में भोजन करने तक और कुछ भी नहीं खाना चाहिए। दोपहर में चोकर युक्त आटे की रोटी खानी चाहिए। उबली हुई शाक-सब्जियां खानी चहिए। शाम के समय में फलों का रस पीना चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदिन उपचार करने से चश्मा हट सकता है तथा आंखों के कई प्रकार के रोग भी ठीक हो जाते हैं।
सुबह के समय में प्रतिदिन हरे केले के पत्तों को अपनी आंखों के सामने रखकर कुछ मिनटों तक सूर्य के प्रकाश को देखने तथा इसके बाद पामिंग करने और फिर इसके बाद उदरस्नान या मेहनस्नान करने से आंखों पर से चश्मा हट सकता है तथा कई प्रकार के रोग जो आंखों से संबन्धित होते हैं, ठीक हो जाते हैं।
प्रतिदिन रात को सोते समय आंखों पर गीली मिट्टी की पट्टी लगाने तथा कमर पर कपड़े की गीली पट्टी करने और अपने पेड़ू पर गीली मिट्टी की पट्टी लगाने से रोगी व्यक्ति की आंखों पर से चश्मा हट सकता है लेकिन इसके साथ-साथ रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन एनिमा क्रिया भी करनी चाहिए तथा सप्ताह में एक बार उपवास रखना चाहिए।
प्राकृतिक चिकित्सा के द्वारा मोतियाबिन्द रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को आंखों से पानी आने का उपचार कराना चाहिए। इसके बाद रोगी को विटामिन `ए` `बी` `सी` वाले पदार्थों का कुछ दिनों तक भोजन में लगातार सेवन करना चाहिए। ये पदार्थ कुछ इस प्रकार हैं- आंवला, सन्तरा, नींबू, अनन्नास, गाजर तथा पालक आदि।
मोतियाबिन्द के रोगी को इलाज के दौरान सबसे पहले अपने पेट को साफ करने के लिए एनिमा लेना चाहिए तथा इसके बाद अपने पेट पर मिट्टी का लेप करना चाहिए। रोगी को कुछ देर के बाद कटिस्नान करना चाहिए और फिर कुछ समय के लिए अपनी आंखों पर गीली पट्टी लपेटनी चाहिए। मोतियाबिन्द से पीड़ित रोगी को अपनी आंखों पर गर्म तथा ठंडी सिंकाई करनी चाहिए।
मोतियाबिन्द से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन नीम की 5-6 पत्तियां खानी चाहिए। इससे रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
जब मोतियाबिन्द रोग का प्रभाव कुछ कम हो जाए तो रोगी व्यक्ति को 1 सप्ताह तक फल तथा सामान्य भोजन खाना चाहिए।
इस रोग से पीड़ित रोगी को कभी भी भारी भोजन नहीं करना चाहिए और न ही मिर्च-मसाला, नमक, चाय तथा कॉफी का सेवन करना चाहिए।
इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को अपनी आंखों के सामने धुंधला-धुधला सा नज़र आने लगता है तथा व्यक्ति को कोई भी वस्तु को देखने में परेशानी होने लगती है।
रोगी व्यक्ति को अधिक रोशनी में देखने में परेशानी होने लगती है।
चश्मे के नम्बर में जल्दी से बदलाव होने लगता है तथा उसे बार-बार चश्मा बदलने की जरूरत होती है।
रोगी व्यक्ति को 2 या 2 से अधिक वस्तु दिखाई नहीं देती हैं।
इस रोग के होने का सबसे प्रमुख कारण शरीर में दूषित द्रव का जमा होना है। दूषित द्रव के कारण आंखों पर प्रभाव पड़ता है और श्वेत मोतियाबिंद का रोग हो जाता है।
शरीर में विटामिन `ए´, `बी´ और `सी´ की कमी हो जाने के कारण भी यह रोग हो सकता है।
नमक, चीनी, शराब, धूम्रपान का सेवन अधिक करने के कारण भी यह रोग हो सकता है।
शरीर में खून की कमी हो जाने के कारण भी यह रोग हो सकता है।
पढ़ते समय प्रकाश कम होना तथा बहुत छोटे अक्षरों को पड़ने के कारण भी यह रोग हो सकता है।
मधुमेह रोग हो जाने के कारण भी यह रोग हो सकता है।
अधिक प्रकाश में रहने के कारण भी यह रोग हो सकता है।
यदि मोतियाबिंद पक जाए तो प्राकृतिक चिकित्सा से इसका कोई भी उपचार नहीं है। लेकिन यदि रोग की शुरूआती अवस्था है तो इसका उपचार प्राकृतिक चिकित्सा से किया जा सकता है।
इस रोग का उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को इस रोग के होने के कारणों को दूर करना चाहिए इसके बाद इसका उपचार प्राकृतिक चिकित्सा से करना चाहिए।
इस रोग का उपचार करने के लिए सबसे पहले दो से तीन दिनों तक रोगी व्यक्ति को फलों का रस (आंवले का रस, गाजर का रस, संतरे का रस, अनन्नास का रस, सफेद पेठे का रस, नींबू पानी, नारियल पानी आदि) का सेवन करना चाहिए। फिर तीन सप्ताह तक बिना पके भोजन (फल, सब्जियां, अंकुरित दाल) का सेवन करना चाहिए। इसके बाद तीन सप्ताह तक संतुलित भोजन करना चाहिए तथा सप्ताह में एक बार उपवास रखना चाहिए। इस प्रकार से उपचार करने से यह रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
गेहूं के ज्वारे का रस पीने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।
इस रोग से पीड़ित रोगी को विटामिन `ए´, `बी´, `सी´ वाले खाद्य पदार्थों का और हरे साग-सब्जियों का अधिक सेवन करना चाहिए।
प्रतिदिन 7-8 बादामों को पानी में पीसकर इसमें कालीमिर्च के चूर्ण को मिलाकर शहद के साथ चाटने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
इस रोग से पीड़ित रोगी को चीनी, मैदा, रिफाईंड चावल, चाय, कॉफी, एल्कोहालिक खाद्य पदार्थ, मिर्च-मसालेदार तथा मांस का सेवन नहीं करना चाहिए।
शाम के समय में आंवले का रस शहद के साथ चाटने तथा तुलसी का रस या इसके पत्ते का सेवन करने से यह रोग ठीक हो जाता है।
इस रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को जलनेति क्रिया करनी चाहिए तथा इसके बाद गर्म ठंडा सेंक करना चाहिए और दिन में कई बार मुंह में पानी भरकर आंखों में पानी के छीटे मारने चाहिए और साप्ताहिक धूपस्नान करना चाहिए। फिर इसके बाद आंखों पर 2 बार गर्म ठंडा सेंक करना चाहिए तथा इसके बाद पेट पर मिट्टी की पट्टी करने से तथा एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ करना चाहिए, फिर कटिस्नान करना चाहिए और फिर रीढ़ पर गीले कपड़े की पट्टी करनी चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदिन उपचार करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
लगभग 10 ग्राम शहद, 1 मिलीलीटर नींबू का रस, 1 मिलीलीटर अदरक का रस तथा एक मिलीलीटर प्याज का रस मिलाकर एक शीशी में भरकर इसे अच्छी तरह से मिला लें। इस मिश्रण को नेत्रज्योति कहते हैं। इस नेत्र ज्योति का सुबह तथा शाम आंखों में लगाने से यह रोग कुछ दिनों में ठीक हो जाता है।
सुबह के समय में इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को नंगे पैर हरी घास पर चलना चाहिए तथा बहुत ज्यादा रोशनी से बचना चाहिए।
प्रतिदिन आंखों का व्यायाम (पामिंग, त्राटक, पुतली का दांया तथा बांया करने तथा ऊपर नीचे करने) करने तथा गर्दन और कंधे का व्यायाम करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
इस रोग से बचने के लिए मानसिक तनाव को दूर करना चाहिए तथा प्रतिदिन शवासन और योगनिद्रा करनी चाहिए।
प्रतिदिन सूर्यतप्त हरा पानी पीने तथा आंखों को इस पानी से धोने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
अप्राकृतिक रूप से भोजन का सेवन करने से भी दृष्टिदोष का रोग हो सकता है।
अंसतुलित भोजन, अम्लकारी उत्तेजक खाद्य पदार्थ, मिर्च-मसालेदार भोजन, खटाई तथा तली-भुनी चीजों को अधिक खाने से भी दृष्टिदोष रोग हो सकते हैं।
खाने में अत्यधिक गर्म तथा अधिक ठंडी चीजों का उपयोग करने से भी दृष्टिदोष रोग हो सकते हैं।
खाना खाकर तुरंत सो जाना, रात के समय में देर से सोना तथा सुबह के समय में देर से उठने के कारण भी दृष्टिदोष रोग हो सकते हैं।
छिलके के बिना दाल तथा चोकर के बिना आटे का अधिक भोजन में प्रयोग करने से भी दृष्टिदोष रोग हो सकते हैं।
सुबह के समय में उठते ही चाय पीने से भी दृष्टिदोष रोग हो सकते हैं।
बहुत अधिक टेलीविजन देखने, अधिक देर तक कंप्यूटर पर कार्य करने से भी दृष्टिदोष हो सकते हैं।