आयुर्वेद के अनुसार, पालक के 8 फायदे

 आयुर्वेद के अनुसार, पालक के 8 फायदे


ठंड के मौसम में मुख्य रूप से आने वाली पत्तेदार सब्जियों में पालक का नाम सबसे ऊपर है। इस हरी भाजी में कई पोषक तत्वा मौजूद हैं जो कहीं और नहीं मिल सकते। पालक स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत उपयोगी, सर्वसुलभ एवं सस्ता उपाय है। आयुर्वेद के अनुसार, जानिए पालक के यह 8 लाभ...


1 इसमें पाए जाने वाले तत्वों में मुख्य रूप से कैल्शियम, सोडियम, क्लोरीन, फास्फोरस, लोहा, खनिज लवण, प्रोटीन, श्वेतसार, विटामिन 'ए' एवं 'सी' आदि उल्लेखनीय हैं। इन तत्वों में भी लोहा विशेष रूप से पाया जाता है।


2 लौह तत्व मानव शरीर के लिए उपयोगी, महत्वपूर्ण, अनिवार्य होता है। लोहे के कारण ही शरीर के रक्त में स्थित रक्ताणुओं में रोग निरोधक क्षमता तथा रक्त में रक्तिमा (लालपन) आती है। लोहे की कमी के कारण ही रक्त में रक्ताणुओं की कमी होकर प्रायः पाण्डु रोग उत्पन्न हो जाता है।


3 लौह तत्व की कमी से जो रक्ताल्पता अथवा रक्त में स्थित रक्तकणों की न्यूनता होती है, उसका तात्कालिक प्रभाव मुख पर विशेषतः होंठ, नाक, गाल, कान एवं आंखों पर पड़ता है, जिससे चेहरे की रंगत अैर लालिमा चली जाती है। कालांतर में संपूर्ण शरीर भी इस विकृति से प्रभावित हुए बिना नहीं रहता।


4 लोहे की कमी से शक्ति ह्रास, शरीर निस्तेज होना, उत्साहहीनता, स्फूर्ति का अभाव, आलस्य, दुर्बलता, जठराग्नि की मंदता, अरुचि, यकृत आदि परेशानियां होती हैं।


5 पालक की शाक वायुकारक, शीतल, कफ बढ़ाने वाली, मल का भेदन करने वाली, गुरु (भारी) विष्टम्भी (मलावरोध करने वाली) मद, श्वास,पित्त, रक्त विकार एवं ज्वर को दूर करने वाली होती है।


6 आयुर्वेद के अनुसार पालक की भाजी सामान्यतः रुचिकर और शीघ्र पचने वाली होती है। इसके बीज मृदु, विरेचक एवं शीतल होते हैं। ये कठिनाई से आने वाली श्वास, यकृत की सूजन और पाण्डु रोग की निवृत्ति हेतु उपयोग में लाए जाते हैं।


7 गर्मी का नजला, सीने और फेफड़े की जलन में भी यह लाभप्रद है। यह पित्त की तेजी को शांत करती है, गर्मी की वजह से होने वाले पीलिया और खांंसी में यह बहुत लाभदायक है।


8 स्त्रियों के लिए पालक का शाक अत्यंत उपयोगी है। युवतियां यदि अपने चेहरे का नैसर्गिक सौंदर्य एवं रक्तिमा (लालिमा) बढ़ाना चाहती हैं, तो उन्हें नियमित रूप से पालक के रस का सेवन करना चाहिए। प्रयोग से देखा गया है कि पालक के निरंतर सेवन से रंग में निखार आता है। इसे भाजी (सब्जी) बनाकर खाने की अपेक्षा यदि कच्चा ही खाया जाए, तो अधिक लाभप्रद एवं गुणकारी है। पालक से रक्त शुद्धि एवं शक्ति का संचार होता है।
[1/2, 13:29] +91 98292 38270: *बालों का गिरना(Hair fall)*
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*परिचय:*


 बाल सिर्फ चेहरे की सुन्दरता ही नहीं बढ़ाते बल्कि ये गर्मी और सर्दी से सिर की रक्षा भी करते हैं। बाल सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों को शोषित करके विटामिन `ए` और `डी` को संरक्षित भी करते हैं तथा इसके साथ-ही साथ उष्णता, शीतलता, और तेज हवा से हमारे सिर की सुरक्षा भी करते हैं। जब यह बाल किसी कारण से झड़ने लगते हैं तो व्यक्ति की सुन्दरता बेकार लगने लगती हैं। इस रोग के कारण व्यक्ति के सिर के बाल झड़ने लगते हैं। जब रोगी व्यक्ति के बाल बहुत अधिक झड़ने लगते हैं तो वह गंजा सा दिखने लगता है।


*बाल झड़ने का कारण:-*


यह रोग व्यक्ति को अधिकतर तब होता है जब व्यक्ति के शरीर में विटामिन `बी´ एवं प्राकृतिक लवणों, लौह तत्व तथा आयोडीन की कमी हो जाती है।


कई प्रकार के लम्बे रोग जैसे- टायफाइड, उपदंश, जुकाम, नजला, साइनस तथा रक्तहीनता (खून की कमी) आदि रोग होने के कारण भी व्यक्ति के बाल झड़ने लगते हैं।


किसी प्रकार के आघात या बहुत अधिक चिंता करने के कारण भी यह रोग व्यक्ति को  हो जाता है।
सिर की ठीक तरीके से सफाई न करने के कारण भी बाल झड़ने लगते हैं।


शरीर में हार्मोन्स के असंतुलन के कारण भी व्यक्ति के बाल झड़ने लगते हैं।


सिर के रक्त संचारण में कमी आ जाने के कारण भी बाल झड़ने का रोग हो सकता है।


शैम्पू तथा साबुन आदि का अधिक मात्रा में उपयोग करने के कारण भी बाल झड़ने लगते हैं।
हेयर ड्रायर्स का अधिक प्रयोग करने के कारण भी बाल झड़ने लगते हैं।


अधिक मात्रा में दवाइयों का प्रयोग करने के कारण भी बाल झड़ने लगते हैं।


कब्ज रहना, नींद न आना तथा अधिक दिमागी कार्य करने के कारण भी बाल झड़ने का रोग व्यक्ति को हो सकता है।


बालों को सही तरीके से पोषण न मिल पाने के कारण बाल कमजोर हो जाते हैं और झड़ने लगते हैं।
वात और पित्त कुपित जब होकर रोमछिद्रों में पहुंचते हैं तो बाल झड़ने लगते हैं।


अधिक मिर्च-मसाले तथा तली हुई चीजों का सेवन करने से बाल झड़ने लगते हैं।


*बाल झड़ने का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-*


बालों के झड़ने के रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने से पहले इस रोग के होने के कारणों को दूर करना चाहिए और फिर इसका उपचार प्राकृतिक चिकित्सा से करना चाहिए।


इस रोग से बचने के लिए भोजन संतुलित तथा पौष्टिक करना चाहिए।


बाल झड़ने के रोग को ठीक करने के लिए सप्ताह में एक बार फलों का भोजन करना चाहिए।


बालों को झड़ने से रोकने के लिए पत्ता गोभी, अनन्नास तथा आंवला का सेवन अधिक मात्रा में करना चाहिए।


बाल झड़ने से रोकने के लिए व्यक्ति को अपने भोजन में सब्जियां, सलाद, मौसम के अनुसार फल और अंकुरित अन्न का अधिक मात्रा में उपयोग करना चाहिए।


भोजन में आटे की रोटी, चावल, फल व हरी सब्जियों का अधिक प्रयोग करना चाहिए।


इस रोग से पीड़ित रोगी को पालक व गाजर के रस का अधिक सेवन करना चाहिए। इससे रोगी के बाल झड़ना बहुत जल्द ही रुक जाते हैं।
रोगी व्यक्ति को अपने सिर के पसीने को सूखने नहीं देना चाहिए।


बालों को झड़ने से रोकने के लिए आंवले का अपने भोजन में अधिक उपयोग करना चाहिए तथा आंवले के मुरब्बा का सेवन करना भी बहुत लाभदायक होता है।


इस रोग से पीड़ित रोगी को अपने सिर को दही से धोना चाहिए और फिर नारियल के दूध से खोपड़ी की मालिश करनी चाहिए। इसके बाद सिर को धोना चाहिए और कुछ समय बाद बथुए के पानी से सिर को धोना चाहिए। ऐसा करने से रोगी के बाल झड़ना रुक जाते हैं।


इस रोग से पीड़ित रोगी को उंगुलियों से रात को सोने से पहले नित्य पांच मिनट तक सिर की मालिश करनी चाहिए तथा स्नान से पहले दस मिनट तक अपने शरीर पर सूखा घर्षण करना चाहिए। ऐसा कुछ दिनों तक करने से बाल झड़ना रुक जाते हैं।


रात में मेथी के बीजों को पानी में भिगो देना चाहिए। सुबह उठने पर इन्हें पीसकर लेप जैसा बना लेना चाहिए और फिर इस लेप को बालों पर लगाना चाहिए। ऐसा कुछ दिनों तक करने से रोगी के बाल झड़ना रुक जाते हैं।


बाल झड़ने के रोग में बेरी के पत्तों को पीसकर इसमें नींबू का रस मिलाकर सिर पर लगाने से बाल दुबारा उगने लगते हैं।


ताजे धनिये का रस या गाजर का रस बालों की जड़ों में लगाने से रोगी व्यक्ति के बाल झड़ने बंद हो जाते हैं।


सिर में जिस जगह से बाल झड़ गये हैं उस जगह पर प्याज का रस लगाने से बाल दुबारा से उग आते हैं।


गाजर को पीसकर लेप बना लें। फिर इस लेप को सिर पर लगाये और दो घंटे के बाद धो दें। ऐसा प्रतिदिन करने से बाल झड़ने बंद हो जाते हैं।


गंजेपन को दूर करने के लिए रात को सोते समय नारियल के तेल में नींबू का रस मिलाकर सिर की मालिश करनी चाहिए।


सूर्य तप्त नीली बोतल के तेल से सिर पर रोजाना मालिश करने से बाल गिरना रुक जाते हैं।


खाना खाने के बाद सिर को उंगलियों से खुजलाना चाहिए, इससे बाल झड़ना कुछ ही दिनों में रुक जाते हैं।


बाल झड़ने के रोग को ठीक करने के लिए रोजाना 2-3 बार लगभग पांच मिनट के लिए दोनों हाथों की उंगुलियों के नाखूनों को आपस में रगड़ना चाहिए।


सुबह सूर्योदय से पहले दैनिक कार्यों से निवृति के बाद स्नान करना चाहिए। इस प्रकार के स्नान से पेट, सिर और आंखों में गर्मी नहीं बढ़ती है। इसके फलस्वरूप बाल झड़ना रुक जाते हैं।


बालों को झड़ने से रोकने के लिए सप्ताह में कम से कम दो बार मुलतानी मिट्टी से बालों को धोना चाहिए।


इस रोग को ठीक करने के लिए खुली हवा में लंबी गहरी सांस लेनी चाहिए तथा कुछ व्यायाम भी करने चाहिए।


यदि किसी व्यक्ति को जुकाम, खांसी, तनाव, चिंता, प्रमेह आदि रोग हो गए हों तो उसे तुरंत ही इसका इलाज करना चाहिए क्योंकि ये बालों के झड़ने का कारण बन सकते हैं।


रोजाना रात को सोते समय 10 से 15 मिनट तक अपनी उंगलियों से बालों की जड़ों में सरसों या बादाम के तेल की हल्की-हल्की मालिश करनी चाहिए। ऐसा करने से बाल झड़ना रुक जाते हैं तथा बाल घने तथा लम्बे होने लगते हैं।
आंवला, ब्राह्मी तथा भृंगराज को एकसाथ मिलाकर पीस लें। फिर इस मिश्रण को लोहे की कड़ाही में फूलने के लिए रखना चाहिए और सुबह के समय में इसको मसल कर लेप बना लेना चाहिए। इसके बाद इस लेप को 15 मिनट तक बालों में लगाएं। ऐसा सप्ताह में दो बार करने से बाल झड़ना रुक जाते हैं तथा बाल कुदरती काले हो जाते हैं।


रात को तांबे के बर्तन में पानी भरकर रखें। सुबह के समय उठते ही इस पानी को पी लें। इसके साथ ही आधा चम्मच आंवले के चूर्ण का सेवन भी करें। इससे कुछ ही समय में बालों के झड़ने का रोग ठीक हो जाता है।


गुड़हल के फूल तथा पोदीने की पत्तियों को एक साथ पीसकर थोड़े से पानी में मिलाकर लेप बना लें। इस लेप को सप्ताह में कम से कम दो बार आधे घण्टे के लिए बालों पर लगाना चाहिए। ऐसा करने से बाल झड़ना रुक जाते हैं तथा बाल सफेद भी नहीं होते हैं।


लगभग 80 मिलीलीटर चुकन्दर के पत्तों के रस को सरसों के 150 मिलीलीटर तेल में मिलाकर आग पर पकाएं। जब पत्तों का रस सूख जाए तो इसे आग पर से उतार लें और ठंडा करके छानकर बोतल में भर लें। इस तेल से प्रतिदिन सिर की मालिश करने से बाल झड़ने रुक जाते हैं तथा बाल समय से पहले सफेद भी नहीं होते हैं।


कलौंजी को पीसकर पानी में मिला लें। इस पानी से सिर को कुछ दिनों तक धोने से बाल झडना बंद हो जाते हैं तथा बाल घने भी होना शुरु हो जाते हैं।


नीम की पत्तियों और आंवले के चूर्ण को पानी में डालकर उबाल लें और सप्ताह में कम से कम एक बार इस पानी से सिर को धोएं। ऐसा करने से कुछ ही समय में बाल झड़ना बंद हो जाते हैं।


बाल झड़ने से रोकने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार कई प्रकार के आसन हैं जिनको करने से बाल झड़ने कुछ ही दिनों में ठीक हो जाते हैं। ये आसन इस प्रकार हैं- शवासन, सर्वांगासन, योगनिद्रा, मत्स्यासन, विपरीतकरणी मुद्रा तथा शरीर के अन्य उलटने-पलटने का आसन। इस प्रकार से प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने से रोगी के बाल झड़ने की समस्या दूर हो जाती है।


इस रोग का उपचार करते समय प्राकृतिक चिकित्सा के सुझावों पर पूर्ण विश्वास रखना चाहिए और फिर इसका उपचार करना चाहिए।


जिस दिन आप प्राकृतिक चिकित्सा से इस रोग का उपचार कर रहे हों उस दिन कोई भी साबुन या शैम्पू का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
[1/2, 13:29] +91 98292 38270: *कफ-खाँसी*
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अदरक का सूखा हुआ रूप सौंठ होता है। इस सौंठ को पीस कर पानी में खूब देर तक उबालें। जब एक चौथाई रह जाए तो इसका सेवन गुनगुना होने पर दिन में तीन बार करें। तुरंत फायदा होगा। 


काली मिर्च, हरड़े का चूर्ण, अडूसा तथा पिप्पली का काढ़ा बना कर दिन में दो बार लेने से खांसी दूर होती है। 


हींग, काली मिर्च और नागरमोथा को पीसकर गुड़ के साथ मिलाकर गोलियाँ बना लें। प्रतिदिन भोजन के बाद दो गोलियों का सेवन करें। खांसी दूर होगी। कफ खुलेगा। 


पानी में नमक, हल्द‍ी, लौंग और तुलसी पत्ते उबालें। इस पानी को छानकर रात को सोते समय गुनगुना पिएं। सुबह खांसी में असर दिखाई देगा। नियमित सेवन से 7 दिनों के अंदर खांसी का नामोनिशान नहीं रहेगा।
[1/2, 13:30] +91 98292 38270: *अस्थमा*
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अस्थमा और एलर्जी पीड़ितों के लिए यह माह थोड़ा खतरनाक होता है। क्योंकि बारिश के बाद सितंबर में धूल उड़ती है। बारिश के कीटाणुओं को फैलने-पनपने का मौका मिल जाता है। यूं भी वातावरणीय कारकों से फैल रही एलर्जी के कारण अस्थमा के मरीज तेजी से बढ़ रहे हैं। इसके साथ बदलती जीवनशैली और प्रदूषण के कारण भी अस्थमा और एलर्जी के मरीज बढ़ रहे हैं। कुछ आयुर्वेदिक औषधियां और घरेलू नुस्खे इसमें काफी राहत देते हैं।


*क्या होता है अस्थमा*


श्वास नलियों में सूजन से चिपचिपा बलगम इकट्ठा होने, नलियों की पेशियों के सख्त हो जाने के कारण मरीज को सांस लेने में तकलीफ होती है। इसे ही अस्थमा कहते हैं। अस्थमा किसी भी उम्र में यहां तक कि नवजात शिशुओं में भी हो सकता है।


*अस्थमा :*


यह हैं लक्षण
बार-बार होने वाली खांसी
सांस लेते समय सीटी की आवाज
छाती में जकड़न
दम फूलना
खांसी के साथ कफ न निकल पाना
बेचैनी होना


*बचाव ही सर्वोत्तम उपाय*


धूल, मिट्टी, धुआं, प्रदूषण होने पर मुंह और नाक पर कपड़ा ढ़कें। सिगरेट के धुएं से भी बचें।


ताजा पेन्ट, कीटनाशक, स्प्रे, अगरबत्ती, मच्छर भगाने की कॉइल का धुआं, खुशबूदार इत्र आदि से यथासंभव बचें।


रंगयुक्त व फ्लेवर, एसेंस, प्रिजर्वेटिव मिले हुए खाद्य पदार्थों, कोल्ड ड्रिंक्स आदि से बचें।


*दमा में कारगर जड़ी-बूटियां*


वासा- यह सिकुड़ी हुई श्वसन नलियों को चौंड़ा करने का काम करती है।


कंटकारी- यह गले और फेंफड़ों में जमे हुए चिपचिपे पदार्थों को साफ करने का काम करती है।


पुष्करमूल- एंटीहिस्टामिन की तरह काम करने के साथ एंटीबैक्टीरियल गुण से भरपूर औषधि।


यष्टिमधु- यह भी गले को साफ करने का काम करती है।
[1/2, 13:30] +91 98292 38270: *याददाश्त की कमी,मंदबुद्धि ,लिखा पढा याद न रहना के लिये एक सुलभ व आसान प्रयोग ब्राह्मी बूटी 100 ग्राम,शंखपुष्पी 100 ग्राम ,अश्वगंधा 100 ग्राम,बादाम गिरी 50 ग्राम ,अखरोट गिरी 50 ग्राम ,सफेद मिर्च 25 ग्राम ,मिश्री 450 ग्राम धागे वाली सब साफ स्वच्छ लेकर पावडर करले । एक एक चम्मच बड़ो को आधी आधी चम्मच बच्चों को सुबह शाम खाली पेट दुध से दे।*
[1/2, 13:30] +91 98292 38270: *आंवला*


परिचय : 


आंवले का पेड़ भारत के प्राय: सभी प्रांतों में पैदा होता है। तुलसी की तरह आंवले का पेड़ भी धार्मिक दृष्टिकोण से पवित्र माना जाता है। स्त्रियां इसकी पूजा भी करती हैं। आंवले के पेड़ की ऊचांई लगभग 6 से 8 तक मीटर तक होती है। आंवले के पत्ते इमली के पत्तों की तरह लगभग आधा इंच लंबे होते हैं। इसके पुष्प हरे-पीले रंग के बहुत छोटे गुच्छों में लगते हैं तथा फल गोलाकार लगभग 2.5 से 5 सेमी व्यास के हरे, पीले रंग के होते हैं। पके फलों का रंग लालिमायुक्त होता है। खरबूजे की भांति फल पर 6 रेखाएं 6 खंडों का प्रतीक होती हैं। फल की गुठली में 6 कोष होते हैं, छोटे आंवलों में गूदा कम, रेशेदार और गुठली बड़ी होती है, औषधीय प्रयोग के लिए छोटे आंवले ही अधिक उपयुक्त होते हैं। 


विभिन्न रोगों में सहायक : 


1. बालों के रोग : आंवले का चूर्ण पानी में भिगोकर रात्रि में रख दें। सुबह इस पानी से रोजाना बाल धोने से उनकी जड़े मजबूत होंगी, उनकी सुंदरता बढ़ेगी और मेंहदी मिलाकर बालों में लगाने से वे काले हो जाते हैं। 


2. पेशाब की जलन : 


आधा कप आंवले के रस में 2 चम्मच शहद मिलाकर पिएं। 
हरे आंवले का रस 50 मिलीलीटर, शक्कर या शहद 25 ग्राम थोड़ा पानी मिलाकर सुबह-शाम पीएं। यह एक खुराक का तोल है। इससे पेशाब खुलकर आयेगा जलन और कब्ज ठीक होगी। इससे शीघ्रपतन दूर भी होता है। 


3. हकलाहट, तुतलापन : 


बच्चे को 1 ताजा आंवला रोजाना कुछ दिनों तक चबाने के लिये दें। इससे जीभ पतली, आवाज साफ, हकलाना और तुतलापन दूर होता है। 
हकलाने और तुतलाने पर कच्चे, पके हरे आंवले को कई बार चूस सकते हैं। 


4. खून के बहाव (रक्तस्राव) : स्राव वाले स्थान पर आंवले का ताजा रस लगाएं, स्राव बंद हो जाएगा। 


5. धातुवर्द्धक (वीर्यवृद्धि) : एक चम्मच घी में दो चम्मच आंवले का रस मिलाकर दिन में 3 बार कम-से-कम 7 दिनों तक ले सकते हैं। 


6. पेशाब रुकने पर : कच्चे आंवलों को पीसकर बनी लुग्दी पेडू पर लगाएं। 


7. आंखों (नेत्र) के रोग में : 


लगभग 20-50 ग्राम आंवले के फलों को अच्छी तरह से पीसकर 2 घंटे तक 500 मिलीलीटर ग्राम पानी में उबालकर उस जल को छानकर दिन में 3 बार आंखों में डालने से आंखों के रोगों में बहुत लाभ होता है। 
वृक्ष पर लगे हुये आंवले में छेद करने से जो द्रव पदार्थ निकलता है। उसका आंख के बाहर चारों ओर लेप करने से आंख के शुक्ल भाग की सूजन मिटती है। 
आंवले के रस को आंखों में डालने अथवा सहजन के पत्तों का रस 4 ग्राम तथा सेंधानमक लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग इन्हें एक साथ मिलाकर आंखों में लगाने से शुरुआती मोतियाबिंद (नूतन अभिष्यन्द) नष्ट होता है। 
लगभग 6 ग्राम आंवले को पीसकर ठंडे पानी में भिगो दें। 2-3 घंटे बाद उन आंवलों को निचोड़कर फेंक दें और उस जल में फिर दूसरे आंवले भिगो दें। 2-3 घंटे बाद उनको भी निचोड़ कर फेंक दें। इस प्रकार 3-4 बार करके उस पानी को आंखों में डालना चाहिए। इससे आंखो की फूली मिटती है। 
आंवले का रस पीने से आंखों की रोशनी बढ़ती है। आंवले के साथ हरा धनिया पीसकर खाने से भी आंखों के रोग में लाभ होता है। 


8. सुन्दर बालों के लिए : 


सूखे आंवले 30 ग्राम, बहेड़ा 10 ग्राम, आम की गुठली की गिरी 50 ग्राम और लौह चूर्ण 10 ग्राम, रात भर कढाई में भिगोकर रखें। बालों पर इसका रोजाना लेप करने से छोटी आयु में सफेद हुए बाल कुछ ही दिनों में काले पड़ जाते हैं। 
आंवले, रीठा, शिकाकाई तीनों का काढ़ा बनाकर सिर धोने से बाल मुलायम, घने और लम्बे होते हैं। 
आंवले और आम की गुठली की मज्जा को साथ पीसकर सिर में लगाने से मजबूत लंबे केश पैदा होते हैं। 


9. आवाज का बैठना : 


अजमोद, हल्दी, आंवला, यवक्षार, चित्रक इनको समान मात्रा में मिलाकर, 1 से 2 ग्राम चूर्ण को 2 चम्मच मधु और 1 चम्मच घी के साथ चाटने से आवाज का बैठना ठीक हो जाता है।
एक चम्मच पिसे हुए आंवले को गर्म पानी से फंकी लेने से बैठा हुआ गला खुल जाता है और आवाज साफ आने लगती है।
कच्चे आंवले बार-बार चूस-चूसकर खाएं। 


10. हिक्का (हिचकी) : 


पिपली, आंवला, सोंठ इनके 2-2 ग्राम चूर्ण में 10 ग्राम खांड तथा एक चम्मच शहद मिलाकर बार-बार प्रयोग करने से हिचकी तथा श्वास रोग शांत होते हैं।
आंवले के 10-20 मिलीलीटर रस और 2-3 ग्राम पीपल का चूर्ण, 2 चम्मच शहद के साथ दिन में सुबह और शाम सेवन करने से हिचकी में लाभ होता है।
10 मिलीलीटरआंवले के रस में 3 ग्राम पिप्पली चूर्ण और 5 ग्राम शहद मिलाकर चाटने से हिचकियों से राहत मिलती है।
आंवला, सोंठ, छोटी पीपल और शर्करा के चूर्ण का सेवन करने से हिचकी नहीं आती है।
आंवले के मुरब्बे की चाशनी के सेवन से हिचकी में बहुत लाभ होता है।
[1/2, 13:31] +91 98292 38270: *ईसबगोल (Spogel Seeds)*


ईसबगोल की व्यवसायिक रूप से खेती उत्तरी गुजरात के मेहसाना और बनासकाठा जिलों में होती है। वैसे ईसबगोल की खेती उ.प्र, पंजाब, हरियाणा प्रदेशों में भी की जाती है। ईसबगोल का पौधा तनारहित, मौसमी, झाड़ीनुमा होता है। ईसबगोल की ऊंचाई लगभग 10 से 30 सेमी होती है। ईसबगोल के पत्ते 9 से 27 सेमी तक लम्बे होते हैं। इसका फूल गेहूं की बालियों के समान होता है। जिस पर ये छोटे-2, लम्बे, गोल, अण्डाकार मंजरियों में से निकलते हैं। फूलों में नाव के आकार के बीज लगते हैं। बीजों से लगभग 26-27 प्रतिशत भूसी निकलती है। भूसी पानी के संपर्क में आते ही चिकना लुबाव बना लेती है जो बिना स्वाद और गंध का होता है। औषधि रूप में ईसबगोल बीज और उसकी भूसी का उपयोग करते हैं। 


 


विभिन्न रोगों में उपयोग : 


1. आमातिसार, रक्तातिसार (खूनी दस्त): ईसबगोल को दही के साथ सेवन करने से ऑंवयुक्त दस्त और खूनी दस्त के रोग में लाभ मिलता है। 
2. अमीबिका (पेचिश): 100 ग्राम ईसबगोल की भूसी में 50-50 ग्राम सौंफ और मिश्री को 2-2 चम्मच की मात्रा में रोजाना 3 बार सेवन करने से लाभ मिलता है। 
3. कांच खाने पर: ईसबगोल की भूसी 2 चम्मच की मात्रा में दूध के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से लाभ होता है। 
4. जोड़ों का दर्द: ईसबगोल की पुल्टिश (पोटली) पीड़ित स्थान पर बांधने से जोड़ों के दर्द में लाभ मिलता है। 
5. पायरिया: ईसबगोल को सिरके में मिलाकर दांतों पर मालिश करने से पायरिया के रोग में लाभ मिलता है। 
6. स्वप्नदोष: ईसबगोल और मिश्री मिलाकर एक-एक चम्मच एक कप दूध के साथ सोने से 1 घंटा पहले लें और सोने से पहले पेशाब करके सोयें। 
7. आंव: 1 चाय की चम्मच ईसबगोल गर्म दूध में फुलाकर रात्रि को सेवन करें। प्रात: दही में भिगोकर, फुलाकर उसमें सोंठ, जीरा मिलाकर 4 दिन तक लगातार सेवन करने से आंव निकलना बंद हो जाएगा। 
8. पुरानी कब्ज, आंव, आंतों की सूजन : पुरानी आंव या आंतों की सूजन में 100-100 ग्राम बेल का गूदा, सौंफ, ईसबगोल की भूसी और छोटी इलायची को एक साथ पीसकर पाउडर बना लेते हैं। अब इसमें 300 ग्राम देशी खांड या बूरा मिलाकर कांच की शीशी में भरकर रख देते हैं। इस चूर्ण की 2 चम्मच मात्रा सुबह नाश्ता करने के पहले ताजे पानी के साथ लेते हैं और 2 चम्मच शाम को खाना खाने के बाद गुनगुने पानी या गर्म दूध के साथ 7 दिनों तक सेवन करने से लाभ मिल जाता है। लगभग 45 दिन तक यह प्रयोग करने के बाद बंद कर देते हैं। इससे कब्ज, पुरानी आंव और आंतों की सूजन के रोग दूर हो जाते हैं। 
9. आंव (पेचिश, संग्रहणी): ईसबगोल 3 भाग, हरड़ और बेल का सूखा गूदा बराबर मात्रा में मिलाकर तीनों को बारीक पीसकर 2-2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम दूध के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है। 


10. कांच या कंकड़ खा लेने पर:
यदि खाने के साथ कांच या कंकड़ पेट में चला जाए तो 2 चम्मच की ईसबगोल की भूसी गरम दूध के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से लाभ मिलता है।
ईसबगोल की भूसी को 2 से 3 चम्मच की मात्रा में 1 गिलास ठण्डे पानी में भिगोकर मीठा (बूरा) मिलाकर खायें